संकल्प पत्र और घोषणा पत्र की लड़ाई

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संकल्प पत्र और घोषणा पत्र की लड़ाई से चुनावी लहर गति और ऊंचाई वर्तमान भारतीय  लोकसभा चुनाव में भाजपा और इंडी गठबंधन के कांग्रेस तथा अन्य क्षेत्रीय दलों का चेहरा साफ साफ धर्म,जाति और समुदाय के आधार पर जनता से समर्थन प्राप्त करने का माध्यम बन चुका है।

राजनीतिक दलों के समर्थकों  द्वारा सोशल मीडिया में ए आई का उपयोग डीप फेक और भाषण वीडियो में छेड़छाड़ का आरोप सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं के लिये चुनावी चकल्लस में मनोरंजन बढ़ा रहा या वोटरों को प्रभावित कर ध्रुवीकरण कर रहा इसका पता चुनावी परिणाम आने पर ही चलेगा। गर्मी से तपते मौसम में सोशल मीडिया कारगर  भूमिका नीव रहा है। मूल रूप से बातें बताने का यह तकनीकी साधन चुनावी प्रक्रिया का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया।

कांग्रेसी अपने ही लोगों द्वारा  हिंदुओं, हिन्दू संस्थानों की सम्पत्ति अल्पसंख्यकों में बांटने की योजना का प्रचार कर मुस्लिम समुदाय का वोट पाना चाहती है, आरजेडी जाति आधारित सँख्याबल को हथियार बना रही लोहिया, कर्पूरी ठाकुर, चौधरी चरण सिंह के समाजवाद की धज्जियाँ उड़ाने वाले लालू का पुत्रप्रेम , यूपी में मुलायम पुत्र अखिलेश का नकारात्मक राजनीतिक दृष्टिकोण, ममता बंगलादेशी, रोहंगिया को समर्थन देकर वोट बैंक बना रही, दक्षिण में स्टालिन का खेल भी हिंदुत्व विरोधी सिद्धांत पर आधारित है, केरल में वामपंथी प्रबल हिंदुत्व विरोधी।

ऐसे में जब सभी विपक्षी दल धर्म और जाति की राजनीति करते हैं तो ठीक और भाजपा बचे हुये लोगों के लिये भी समान हक की बात करने पर साम्प्रदायिक। लंबे शासन काल में कांग्रेस द्वारा उपेक्षित,शोषित ,अपमानित, पीड़ित हिन्दू समुदाय और मुस्लिम समुदाय के साथ सहानुभूति का दाँव कांग्रेस के लिये आत्मघाती कदम हुआ या सत्ता प्राप्ति का साधन यह समय बताएगा। बहुतायत हिन्दू समुदाय को भाजपा के पास कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति ने भेजा। उनके लिये भाजपा आशा की किरण प्रमाणित हुई। इसीलिये भाजपा दो बार लगातार सत्तारूढ़ हुई। अभी चल रहे चुनावों में विपक्षी दलों की नीति सत्तारूढ़ होकर अपने पुराने एजेंडे को लागू करना है ना कि देश का विकास और समाज की सेवा करना यह प्रतिउत्तर है भाजपा के प्रधानमंत्री प्रत्याशी नरेंद्र मोदी का। 

नरेंद्र मोदी के भाषणों में उठाये जा रहे मुद्दे की विश्वसनीयता का विश्लेषण करने के लिये पिछले कांग्रेसी शासनकाल के सिंहावलोकन करने पर स्पष्ट होता है कि हिंदुओं की मेहनत, बुद्धि, बल,से उपार्जित धन को,अधिकार को किस तरह मुस्लिमों में बांटा गया ,इसे कांग्रेसी सरकार द्वारा की गई साम्प्रदायिकता के रूप में हिंदुओं ने पहचाना। 

साम्प्रदायिकता को कांग्रेस ने कानूनी जामा पहनाया और सेकुलरिज्म की नकाब ओढ़ कर वैश्विक स्तर पर अपने को पाक साफ दिखाने का ढोंग रचा।

भारत के निर्माण का मूल राजनीतिक सिद्धांत  धार्मिक आधार पर भूमि का बंटवारा जनसंख्या के अनुपात में करना और फिर सेक्यूलर होने के प्रमाण स्वरूप  संवैधानिक संशोधन करना अपने आप में एक विरोधाभासी राजनीतिक स्वरुप है। यह बहुसंख्यकों के साथ एक क्रूर मजाक है। 

अधिकांश लोगों का मानना है कि देश की आजादी के बाद से ही एक समुदाय विशेष के हितों की रक्षा के लिये कानूनी व्यवस्था संविधान में संशोधन के माध्यम से करना तुष्टीकरण नहीं बल्कि स्पष्ट रूप से बहुसंख्यक समुदाय के साथ धार्मिक भेद भाव करना है। क्या केवल अल्पसंख्यक समुदाय और उसमें भी खास कर मुस्लिमों के हितों को बढ़ावा देने के लिये निर्मित किये गये 1992 के अल्पसंख्यक आयोग और देश में लोग दस कानूनों और संवैधानिक संशोधनों के पुनरावलोकन की आवश्यकता नहीं है?

 1894 के भूमि अधिग्रहण कानून के सहारे अंग्रेजों ने चर्च के लिये भूमि की व्यवस्था कर धर्म को राजनीति द्वारा संरक्षण देने की प्रथा आरम्भ की। फिर 35ए, 370 और नेहरूजी द्वारा 1954 में वक्फ़ बोर्ड के निर्माण के माध्यम से मुसलमानों के लिये जमीन का जुगाड़ का कानूनी रास्ता खोला गया जिसे कालांतर में इंदिरा गांधी, नरसिम्हा राव,मनमोहन सिंह द्वारा और मजबूत किया गया। 1984 में माइनारिटी यूनिवर्सिटी का प्रावधान अल्पसंख्यक कल्याण के नाम पर शिक्षा के क्षेत्र में छिपे रूप से मुसलमानों का अधिकाधिक वर्चस्व स्थापित करने का प्रयास रहा। 1985 में नागरिकता कानून में 6ए धारा जोड़कर साठ लाख बंगलादेशियों को नागरिकता प्रदान की गई। 1991 का प्लेस ऑफ वरशिप एक्ट, 2012 में एआई एम पी एल बी के जरिये मदरसों को शिक्षा के अधिकार क्षेत्र से बाहर जिससे उन्हें   ऑडिट की बाध्यता और अन्य गतिविधियों की छानबीन से मुक्त कर दिया गया।

कानून में अल्पसंख्यक की कोई स्पष्ट परिभाषा उपलब्ध है तो कहा जाय, कहीं स्थानीय आधार पर कहीं देश में जनसख्या के आधार पर। अनुमानित दस प्रतिशत से कम जनसंख्या वालों को भाषा,धर्म और संस्कृति के आधार पर अल्पसंख्यक मानने की बात कही गयी। 

इनमें से जो वर्तमान में दस प्रतिशत से अधिक जनसंख्या वाले समुदाय हैं उनके लिये अल्पसंख्यक आयोग का क्या औचित्य है? वक्फ बोर्ड का निर्माण तत्कालीन कांग्रेस  सरकार की मुसलमानों का पक्षकार सी भूमिका को प्रमाणित करता है।

हिन्दू मंदिरों पर कांग्रेसी सरकार द्वारा कानून बना कर हक जताना हिंदुओं के विरोध में लिया गया निर्णय है। 

ऐसे में आग में घी का काम किया सैम पित्रोदा के हिन्दू मृतक की संपत्ति के निपटारे वाली योजना ने। फिर आयी एक्स रे करने की बात। साम्प्रदायिकता को वर्तमान चुनाव का मुद्दा कांग्रेस ने बनाया। हाथ से आंधी को रोका जा सकता है क्या?

मोदी की सबका साथ सबका विकास नीति की प्रमाणिकता पर संदेह करना अफवाह फैलाने समान है क्योंकि केंद्र सरकार की योजनाओं में अल्पसंख्यक लाभुकों की बड़ी संख्या इसे प्रमाणित करती है।

कांग्रेस ने भाजपा की जीत सुनिश्चित कर दी है अपनी मुस्लिम तुष्टिकरण और हिन्दू विरोधी विचारधारा से और अब इन बदली हुई परिस्थितियों में जब राजनीतिक और भौगोलिक तापमान काफी बढ़ा हुआ है यदि एनडीए लोकसभा चुनाव में नया रिकॉर्ड बनाये तब ताज्जुब नहीं होगा। क्योंकि चुनावी लहर से प्रतीत होता है कि जनता के  लिये अस्तित्व और स्वाभिमान की स्थापना के लिये एक होने का मार्ग ही एक मात्र उपाय बचा है।

 ऐसा होने पर देश के विकास के लिए कई निर्णायक प्रस्तावों को अमली जामा पहनाते हुये देखना देशवासियों के लिये सुखद अनुभव होगा।

4 जून को एक मजबूत सरकार होगी, जब हमसब लगायें बूथ पर कतार, प्रयोग करें अपना मताधिकार , गर्मी का ताप सह कर बनायें अपनी सरकार। जनता की जीत होगी लोकतंत्र मजबूत होगा। आगे फिर अगली मुलाकात में।

मानिक चंद सेठ

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